सृंगारप्रकाशा Sringaraprakasha, (set of 2 volumes)
Language: Sanskrit Publication details: New Delhi: Indira Gandhi National Centre for the Arts, 2007Description: 860ISBN:- 8185503133
- 891.44 BHO
Item type | Current library | Collection | Call number | Vol info | Status | Date due | Barcode | Item holds | |
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Alliance School of Liberal Arts and Humanities | Indian Knowledge Systems (IKS) | 891.44 BHO (Browse shelf(Opens below)) | Vol. 1 | Available | LA05538 | |||
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Alliance School of Liberal Arts and Humanities | Indian Knowledge Systems (IKS) | 891.44 BHO (Browse shelf(Opens below)) | Vol. 2 | Available | LA05539 |
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शृङ्गारप्रकाश सच्चे अर्थों में रसप्रकाश है और इसका नाम है साहित्यप्रकाश। संस्कृतकाव्यशास्त्र के इतिहास में साहित्यकल्प नामक अन्तिमकल्प का आरम्भ इसी से हुआ है। धारानगरी में १००५-१०६२ ई. में रचित यह ग्रन्थ १९१६ में मलयालम लिपि में कोचीन के पास मिला, किन्तु इसे व्यवस्थित रूप से सम्पादित होने का अवसर इस संस्करण के साथ मिल रहा है। यह ग्रन्थ बीच-बीच में त्रुटित भी है, किन्तु इस संस्करण में उसकी पूर्ति यथासम्भव कर दी गयी है। अब यहाँ अप्राप्त २६वाँ प्रकाश भी परिशिष्ट में नये सिरे से बना कर जोड़ दिया गया है। इस ग्रन्थ में प्राकृत गाथाओं को भी प्रामाणिक आधार पर ठीक कर उनके पाठभेद परिशिष्टों में दे दिए गये हैं। साहित्यशास्त्र के ज़िस आगम को आनन्दवर्द्धन व अभिनवगुप्त ने जानते हुए भी छोड़ रखा था, प्रस्तुत ग्रन्थ अग्निपुराण में सुरक्षित उसी आगम की प्रतिप्रस्तुति है। एक प्रकार से यह नाट्यशास्त्र का भी पुनः संस्कार है। भाषा ही बनती है काव्य, अतः प्रस्तुत ग्रन्थ में भाषा के आरम्भिक घटक वर्ण से लेकर अन्तिम रूप प्रबन्ध तक का व्यापक विश्लेषण दिया गया है। इस प्रकार यह ग्रन्थ व्याकरणशास्त्र का भी ग्रन्थ है। इसका निर्माता समस्त आग्रहों से मुक्त है। आचार्यों में भरत, भर्तृहरि, दण्डी, भामह का यथोचित उपयोग किया गया है। कवियों में कालिदास, भवभूति, भारवि और माघ को व्यापक स्थान दिया गया है इसमें। भोजराज अभिनवगुप्त के कनिष्ठ समकालिक आचार्य हैं, जो अपने समय तक की साहित्यशास्त्रीय समग्रता को ध्वनिवादियों से अधिक प्रस्तुत करते हैं। यह संस्करण २०६८ पृष्ठों का है जिसमें १६३० पृष्ठ मूल के हैं.
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